*846 मुसाफिर चल जाना चल जाना रे यह संसार सराय 262।।
मुसाफिर चल जाना चल जाना रे यह संसार सराय।।
इस सराय की सार पुरानी एक आवत एक जाए।।
राजा रानी पंडित ज्ञानी कोई रहने नहीं पाए।।
गाड़ी पल को रहने कारण मत सामान जमाए।।
ब्रह्मानंद छोड़ सब चिंता हरि चरण चित लाए।।
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