*964 मेरे मन अब तो सुमर हरि नाम 257।।
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मेरे मन अब तो सुमर हरि नाम।।लख चौरासी जिया जून में नहीं पाया विश्राम।।
कर्मों के वश स्वर्ग नरक में भटकत फिरा निष्काम।।
मनुष्य हैं मिली यह दुर्लभ मोक्ष द्वार सुखधाम।।
ब्रह्मानंद चली सब जावे वृथा उम्र तमाम।।
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