*979. मान रे मन मान मूर्ख 443।
मान रे मन मान मूरख बात मेरी मान रे।।
जैसे बिजली बीच बादल होता है चलमान रे।
माल धन जीवन नहीं थीर, क्या करें अभिमान रे।।
जग में मानुष देह पाई परम मोक्ष निधान रे।
भजन बिना व्यर्था गंवाई भूलकर नादान रे।।
कर ले जो कुछ हो सके अरे योग जप तप दान रे।
मन में फिर पछतायेगा जब निकल जाए प्राण रे।।
संत संगत बीच जाकर सरवन कीजे ज्ञान रे।
ब्रह्मानंद स्वरूप पूर्ण, घट में अपने जान रे।
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