*978 लागी का मार्ग और है लगी चोट कलेजे करके।।

लागी का मार्ग और है लगी चोट कलेजे करके।।

बन बीच भरतरी भूप ने एक मारा ताण निशाना।
कोई घड़ी सधी थी आवन की साधो का हो गया आना।।
कोई मुवा मृग जवा दियो ना तो तार धरो ना वाना।।
      वह जिंदा कर दिया धोर था, शिष्य बना परीक्षा करके।।
गोपीचंद जोगी हो गए जिस ने ले लिया भगवा बाना।
गुरु महल जनाने भेजता ड्योढी पर अलग जगाना।
व्यंजन छत्तीसों छोड़ के भिक्षा का भोजन खाना।
       तन पड़ गया कमजोर था ना खाया उदर भर के।।
वाजिद कहे उठाओ ऊंट को, लोग कहे यह मूवा।
रही उठने वाली चीज नहीं, गया उड़ सैलानी सुआ।
कुछ नक शक बिगड़ा है, नहीं वाजिद  अचरज हुआ।।
        जिसने करा अचंभा घोर है तजा राज काल से डर के।।
सुल्तानी मगन वैराग्य में जिने तज दिया बलक बुखारा।
कदे पालकियों में चा लता अब खा लिया गूदड़ भारा।
सब संगी छोडी रोवती, रोवैत था कुनबा सारा।।
              शोर मचा रणवास में ना देखा पीछा  फिरके
कुएं में शेख फरीद ने कैसी बोली मीठी भाषा।
तुम चुग चुग कागा खा लियो मेरे तन का हाड़ और मासा।
मेरे दो नैना मत छीन छेडियो मुझे राममिलन की आशा।
         जिस ने करी तपस्या गौर थी, वे हुए आश्रय हरी के।।
पीपा दरिया में कूद गए जिसने कैसी करी ढिठाई।
वे नर पाला जीत गए जिसने सिर धड़ की बाजी लाई।
कह मंगलानंद तुम चेती हो सोच समझ मेरे भाई।
बिन चेते झूठा शोर है तुम जाइयो शुक्रम करके।।


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