*957 बार-बार तने मैं समझाऊं समझ मेरे मन यार।।

                                957
बार-बार तने मैं समझाऊंगा समझ मेरे मन यार।
                 सत्संग में तूं आजा न एक बार।।
कब तक झूठ चलेगी तेरी कब तक पाप कमाएगा।
चोरी चुगली बेईमानी का, कब तक खेल खिलाएगा।
           क्या मुख लेकर कर जाएगा, उस घर में राज द्वार।।

कोठी बंगले धन और दोलत झूठी तेरी शान है।
क्या लाया क्या हाल है जायेगा दो दिन का मेहमान है।
         क्या तेरी पहचान है, कदे लाया नहीं विचार।।

गर्भ वास में वचन भरे थे, याद तेरे इकरार नहीं।
हरदम बैर कुब्ध में राखे सत्संग वाली सार नहीं।
          उस मालिक से प्यार नहीं, जो सबका सर्जन हार।।

जहां जाओ सत्संग वहां दो घड़ी जाया करो।
काम क्रोध मद लोभ तज गुरु चरण चित लाया करो।
       कहे कर्म नाथकर गाया करो, भाई शब्द ज्ञान टकसार।।


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