*984 तू खोजत किसे फिरें।। 445

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तू खोज किसे फिरे तेरे घट में सर्जन हार।।

जैसे कस्तूरी बसे मृगा में, ढूंढत घास फिरे।
पीछे लगे वह काल पारधी, क्षण में प्राण हरे।।

इंगला पिंगला सुषुम्ना नाड़ी इनमें ध्यान धरे।
शहसर में है भंवर गुफा जहां भंवरा गूंज करें।।

दिल दरिया में हीरे लाल हैं गुरुमुख परख करें।
मरजीवा की सेल पिछाने, हीरा हाथ पड़े।।

कह रविदास सुनो भाई साधो यह पद है निर्वाण।
जो नर इसको समझे बूझे सोई चतुर सुजान।।

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