*949 समझ मन बावला रे तेरा अब तैरने का दांव।।433।।

                             433
समझ मन बावला रे, तेरा अब तरने का दाव।।

हीरा बीच बाजार में, लिए फिरे साहूकार।
जब तक सतगुरु ना मिले रे, तब तक मती खराब।।

रण में सूरा जाए के रे, किसकी देखे बाट।
आगे को ही बढ़ता रहे, आप कटे चाहे काट।।

जैसे सती बैठ चिता पर, रटे पिया पिया।
तन मन अपना मारके रे, जल बल हो गई खार।।

घीसा संत मिले सूरमा, जीता करे विचार।
जो सतगुरु के साथ रहे रे, हो भवसागर पार।।

Comments

Popular posts from this blog

*165. तेरा कुंज गली में भगवान।। 65

*432 हे री ठगनी कैसा खेल रचाया।।185।।

*106. गुरु बिन कौन सहाई नरक में गुरु बिन कौन सहाई 35