*953 समझ ले तेरी कौन चीज की आशा।।

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समझ ले तेरी कौन चीज की आशा।।

जो सुख चाव्हे है विषय भोग में, यहां नहीं सुख जरा सा।
भोग नहीं ये रोग समझ ले, पड़े काल का फांसा।।

एक सुख आतम एक अनातम एक रीता एक भरा सा।
एक सुख बंधन का कारण एक में समझ खुलासा।।

घर में धरी चीज ना सुझे यह बड़ा अजब तमाशा।
जल में रहते थल नहीं मिलता, मरे पपीहा प्यासा।।

गुरु भावानन्द आनंद हो बैठे, हुई वासना नासा।
कह ओंकार खोल जब होवे दिखे भाव भरा सा।।

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