*947 मेरा मन मन सुक्रम ले रे।।433।।
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मेरा मन सुकर्म कर ले रे।आवेगा तेरे काम अगत में, राम सुमर ले रे।।
दुनियादारी है बड़ी काली इससे बच ले रे।
यो भी मेरा वह भी मेरा इसी में खप ले रे।।
धन और दौलत तेरे काम ना आवे यहीं पर रहले रे।
जिस दिन में तो करें घुमाना, यही सपढ़ ले रे।।
राम नाम और गुरु वचन को, हृदय धर ले रे।
सुबह शाम दो टेम नियम कर राम सुमर ले रे।।
साध संगत और गुरु का आदर निश्चय कर ले रे।
प्रकाशनंद जब मिले शब्द में, जीवत मरले रे।।
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