*950 डाटा ना डटेगा रे मन पावना दिन चार।434।।

                              950
डाटा ना डटेगा रे मन पावना दिन चार।।        
         
छः चकवी दो कसे हुए रे, था बहुत घना धन माल।
लदी लदाई रह गई रे, ऊंटों जैसी लार।।

चित्रशाला सूनी पड़ी रे उठ गए साहूकार।
बिछी बिछाई रह गई रे, चौपड़ ऊपर सार।।

निज मंदिर चोरी हुई रे, हड़ा गया एक लाल।
ना जाने वह कहां गया रे, टूटी नहीं दीवार।।

पांचू खूंटी टूट गई रे, टूटे तिरगुन तार।
तार बेचारा क्या करें रे, नहीं रहा बजावनहार।।

तेल जला बाती बुझी रे महल हुआ अंधियार।
जिसका था उसने ही ले लिया कह गए कबीर विचार।।

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