*1013 तूं कर प्रभु से प्रीत यूं ही दिन बीत जाते हैं।। 456।।

                             456
तू कर प्रभु से प्रीत, यूं ही दिन बीते जाते हैं।।
         तुम हार के बाजी जीत, यूं ही दिन बीते जाते हैं।।

शुरू से है यह ताना-बना, आने के संग है जाना।
कुएं से भर भर लोटा आए, वापिस हुए रवाना।
         है यही जगत की रीत, यूं ही दिन बीते जाते हैं।।

दुख की धूप कभी है सिर पर, कभी है सुख की छाया।
बदल बदल कर समय सभी पर, बारी-बारी आया।
      वर्षा गर्मी कभी शीत, यूं ही दिन बीते जाते हैं।।

सैकड़ों संगी साथी तेरे, इस जग में हैं सहारे।
तू इनको बहुत है प्यारा, और यह तेरे प्यारे।
       पर वहां ना कोई मीत, यूं ही दिन बीते जाते हैं।।

अब भी नत्था सिंह समझ जा, काफी समय बिताया।
खुद समझ जरा ना समझा, औरों को समझाया।
        गीत लिखकर गाया गीत, यूं ही दिन बीते जाते हैं।।

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