*1024 मेरे साहिब अविनाशी मुक्ति रहे सै दासी।।461।।
मेरे साहिब अविनाशी मुक्ति रहे थारी दासी।।
ब्रह्मा जा का धान धरत है नंदन करें खवासी।
जैसे कनक मुख से खावे तो भी भेद ना पासी।।
शिवजी जा का ध्यान धरत है, कहिए योग अभ्यासी।
जहां वेद में भेद ना पाया, देखो देख अभ्यासी।।
ओंकार में भर मत डोले, विष्णु रहे उदासी।
नाम पदार्थ हाथ ना आया, पड़े रे काल की फांसी।।
अजर अमर एक प्रेम पुरुष है वो कहिए फल अविनाशी।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, आगम महल के वासी।।
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