*942 अलख निरंजन मन का मंजन मन की करो सफाई।।431।।

                                 431
अलख निरंजन मन का मंजन मन की करो सफाई।
बिन सतगुरु तेरा मैल कटे ना कैसे हो रोशनाई।।

मन को मंजा रविदास ने सतगुरु पदवी पाई।
सतगुरु मिल गए शंसय मिट गई उल्टी गंगा बहाई।।

गंगा जाते पंडित मिल गया, सुन पंडित मेरे भाई।
एक कोड़ी मेरी भी ले जा, गंगा को दे भेंट चढ़ाई।।

नहाय धोए के पंडित सोचे बात समझ में आई।
यह कोडी दी रविदास ने ले ले गंगा माई।।

हाथ बढ़ा कर गंगा बोली सुन पंडित मेरे भाई।
मेरा कंगन भी ले जा तूं, गुरु को भेंट चढ़ाई।।

घीसा दास संत मिले पूरी जिसने युक्ति बताइ।
जीता दास शरण सतगुरु की हरदम बहुत सहाई।।

Comments

Popular posts from this blog

*165. तेरा कुंज गली में भगवान।। 65

*432 हे री ठगनी कैसा खेल रचाया।।185।।

*106. गुरु बिन कौन सहाई नरक में गुरु बिन कौन सहाई 35