*1022 भजन बिना रे तेरी कैसे हो जा मुक्ति।। 460
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भजन बिना रे तेरी कैसे होजा मुक्ति।।बालापन हंस खेल गवाया।
पढा क्यों ना वेद दिखी रे क्यों ना तख्ती।।
आई रे जवानी घणा मस्ताया।
तु खेला फुटबॉल बजाई तूने चूटकी।।
आया रे बुढ़ापा घणा दुख पाया।
तू रोया मुंडी मार उम्र सारी बीतगी।।
आई रे रेल तू चढ़न ना पाया।
तू सोया चादर तान टिकट सारी बटगी।।
कह कबीर सुनो भाई साधो।
तूं जागा कौन सी गाल, गाल सारी रुकगी।।
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