*895 मन के लगाए पिया पावे रे साधु।।415।।

                              415
मनके लगाए पिया पावे रे साधो।
                     किसी विधि मन को लगाऊ जी।

जैसे नटनी चढ़े बांस पर नटवा ढोल बजावे जी।
इधर-उधर से निगाह बतावे, सूरत बांस पे लावे जी।।

जैसे पनिहारी चली जल भरने, सखीयों संग बतालावे जी।
सिर पे से घड़ा घड़े पे झारी, वा तो झारी में सूरत लगावे जी।।

जेसी बूरा बिखरी रेत में हाथी के हाथ नहीं जावे जी।
ऐसा नन्हा बन मेरे मनवा चींटी बन चुग जावे जी।।

जैसे भुजंगा चला चूगा चुगने, मनी को अलग धर आवे जी।
चुगा चुगे रहे ध्या न मणि में, बिछड़े तो प्राण गंवाए जी।।

जैसे सपेरा चला सांप पकड़ने, टाट दूर धर आवे जी।
कह कबीर सुनो भाई साधो, नेनो से नैन मिला वे जी।।

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