*892 रे भूले मन वृक्षों को मति ले रे ।।415।।

                             415
रे भूले मन वृक्षों का मत ले रे।।
काटनीय से नहीं बैर है सिंचनियासे नहीं सनेह रे।
जो कोई वा को पत्थर मारे वाही को फल दे रे।।
शीत घाम सब आप ही ओट, औरों को सुख दे रे।।
कह कबीर शरण ले गुरु की, भवसागर तर ले रे

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