*933 सेवा करले गुरु की भूले मनवा।। 428

सेवा करले रे गुरु की भूले मनवा।।

ब्रह्मा विष्णु राम लखन शिव और नारद मुनि ज्ञानी।
कृष्ण व्यास और जनक ने महिमा गुरु सेवा की जानी।
                   गाथा पढ़ ले रे गुरु की बोले मनवा।।
कर सत्संग मेट आपा, फिर द्वेष भाव को छोड़ो।
राग द्वेष आशा तृष्णा माया का बंधन तोड़ो।
                   यही भक्ति है गुरु की बोले मनवा।।
ध्यान करो गुरु की मूर्ति का सेवा गुरू चरणन की।
कर विश्वास गुरु वचनों का मिटे कल्पना मन की।
                   कृपा दीखेगी गुरु की।।
संत शरण में जाकर बंदे आवागमन मिटेगा।
जो अज्ञानी बन रहा चोरासी सदा फ़सेगा।
                   मुक्ति हो जाएगी रूह की।।

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