*928 चल मन हरि चटसाल पढ़ाऊं।।426।।

                             426
चल मन हरि चटसाल पढ़ाऊं।
गुरु की सांटी ज्ञान का अक्षर,
                   बिसरे तो सहज समाधि लाऊ।
प्रेमकी पाटी सूरतकी लेखनी,
                   ररो ममो लिखलिख आंख लखाऊं
यही विधि मुक्त भए सनकादिक,
                  हरदे विचार प्रकाश दिखाऊं ।।
कागज कलम मती मसि कर निर्मल,
                  बिन रसना निशदिन गुण गाउ।।
कह रविदास राम भाई, संत राख दे फेर ना आऊं।।

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