*1038 शब्द बने तलवार गुरहा के सत्संग में।।466।।

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शब्द बनी तलवार गुरु के सत्संग में।।
सत्संग की महिमा न्यारी हे उड़े कट जा सकल बीमारी हे।
                       वहां ईश्वर है निराकार।।
तुम सत्संग में नीचे आओ हे, वहां हरदे शुद्ध बनाओ हे।
                       धारा हो जाए बेड़ा पार।।
सोहंग सोहंग घल रही डोरी, बीच सुखमना लेत हिलोरी।
                        मूड तुड़ घालेे तार।।
पांच पच्चीस की लार लगाई कुनबे में एक नागिन ब्याही।
                       करी गुरुओं से तकरार।।
राम नाम का बांधो सेहरा वहां गुरु मां का लगता डेरा।
                       वहां बरसे अमृत धारा।।
दो दिन का दर्शन मेला हे, उड़ जायेगा हंस अकेला हे।
                     कोई शंखनाद हकदार।। 

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