*993 घट पट में लखो हे दीदार इस जग में कैसे भटक रही।।448।।

घट पट में लखों हे दीदार इस जग में कैसे भटक रही।।

जग तो दुख द्वंद का सिंधु है नहीं पाया कोई पार।
इंगला पिंगला कर दो दोनों जाओ सुखमणि द्वार।।

तील के भीतर तील को देखो दोनों तिल करो इकसार ।
बाहरी वृत्ति छोड़ो सारी सुनो संत झंकार।।

कोटिक सूरज चंद्र देखो खिले भांति भांति फुलवार।
बिजली चमके बादल गरजे बहे अमिज़ल धार।।

ताराचंद महबूब मिले जिन्होंने दिया शब्द का सार।
जीवो का आवागमन छुड़ावे जो पकड़े शरण संभाल।।

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