*874 रे मन मुरखा भाई गुरु बिन लखेगा कौन सी घाटी।।406

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रे मन मूरखा भाई गुरु बिन लखेगा कौन सी घाटी।।

बिना गुरु तू बैल बनेगा, चल तेली के बाटी।
सींग से टुंडा पूंछ से लुंडा, पड़े कमर पे लाठी।।

बिना गुरु तू बकरा बनेगा जंगल घास चरेगा।
देवी देवता का नाम लेकर तेरी गर्दन जागी काटी।।

नो इंद्री को वश में कर ले दशमा मन कर डाटी।
धर्मराज की फौज पड़ी है त्रिवेणी के घाटी।।

सभी संतो ने खोज करी है कहीं नहीं है नाटी।
रविदास जी ने पता लगाया भर भर खो बाटी।।

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