*983 सतगुरु मिले हमारे सब दुख मिट गए।।445।।
सतगुरु मिले म्हारे सब दुख मिट गए।
अंतर के पट खुल गए री।।
ज्ञान की आग लगी घट भीतर कोटी कर्म सब जल गई री।।
पांच चोर लुटें थे रात दिन आपसे आप वे टल गए री।।
बिन दीपक म्हारे हुआ उजाला तिमिर जाने कहां नस गए रे।।
त्रिवेणी की धार बहुत है अष्ट कमल दिल खिल गए री।
कोठी भानु मारे हुआ प्रकाश और ही रंग बदल गए री।।
सुन्न महल में वर्षा हुई अमृत कुंड उझल गए री।
कह कबीर सुनो भाई साधो नूर में नूर यह मिल गई री।।
Comments
Post a Comment