*1003 तेरी आनंद होजा काया, जा बैठ हरी के ध्यान में।। चंद्रभान।।452।।
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तेरी आनंद होजा काया, जा बैठ हरी के ध्यान में।
काम क्रोध मद लोभ मोह का त्यागन करके छोड़ दिए।
दसों इंद्रिय वश में करके, विषयों से मुख मोड़ लिए।
फल मिल जागा मनचाहा।।
मेरा मेरी दुखड़ा दे रही, छोड़ दे हेराफेरी ने।
एक दिन माल पराया हो जाए, के फूंके धन की ढेरी ने।
ना संग चलेगी माया।।
जैसी करनी वैसी भरनी, फल तेरे कर्म के थ्यावेंगे।
बोवे पेड़ बबूल बताओ, आम कहां से आवेंगे।
सब संतो ने समझाया।।
ब्रह्म रूप भगवान मिले जो, हरि राम ने रट ले तू।
बिगड़े काम संवर जाएंगे, जो नेम धर्म पर डट ले तू।
दुख का हो जाए कती सफाया।।
चंद्रभान कहे दया से, दुख का सब फंदा टलता।
संतों की जा पहुंच शरण में, कौन कहे हरि ना मिलता।
टोह्या जिसने पाया।।
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