*860 पंथीड़ा पंथ बाका रे।।404।।

                               404
पंथीड़ा पंथ बांका रे।

पंथ बांका मुक्ति नाका अजर झांका रे।
कौन कामधेनु धाम है रे जीने सतनाम चाखा रे।।

महल बारीक एक दो बार है जहां सरवन थाका रे।
जोगन जोगन में के हंस बिछड़े, धनी मिला ना क्या रे।।

कोटी भानु जियाला है, जहां जगमगाता रे।
भय मिटा निर्भय हुआ रे, मिटा यम का संसारे।।

प्रेम आगे नेम कैसा सभी थाका रे।
कह कबीर शरीर झूठा शब्द सांचा रे।।

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