*1028 भक्ति ज्ञान गुरु दीजिए देवन के देवा।।462

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भक्ति दान गुरु दीजिए देवन के देवा।
चरण कमल बीसरो नहीं करु पद सेवा।।
तीरथ व्रत मैं ना करूं ना देवल पूजा।
तुम्हारी और निर्खत रहूं मेरे और न दूजा।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि में बैकुंठ निवासा।
तो मैं कुछ ना मांगहूं , मेरे समरथ दाता।।
सुख संपत्ति परिवार धन और सुंदर नारी हो।
सपने में इच्छा नहीं करो गुरु आन तुम्हारी हो।।
धरमदास की विनती समरथ सुन लीजिए।
यह आना-जाना निवार के अपना कर लीजिए।।

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