*977 लग्न म्हारे लगी हो पायो निज नाम।।442।।
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लग्न मारे लागी हो, पायों निज धाम।मारे सतगुरु शब्द सुनाओ म्हारे नाभि कमल ठहरायो।
हमारे गगन मंडल गर्नायो।।
हमारी शब्द सुंदरी जागी मारी सूरत गुरो से लागी।
वाको सुन्न में डोलो डाल्यो हे।।
जिसने ऑलनियां उड़ायो, जाने पालनिया झूलायों।
वा ने गहरी मौजा मारी है।।
सोहंग सोहंग जो धारा जिसने जाने जानन हारा।
वा ने जाने सो ही पहचाने है।।
या परा पश्यन्ती वाणी या दास कबीर पहचानी।
वा ने जानी सोई मानी रे।।
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