*908 मन मगन हुआ फिर क्या गावे।।419।।
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मन मगन हुआ जब क्या गावे।।यह गुण इंद्रिय दमन करेगा वस्तु अमोली पावे।
त्रिलोकी की इच्छा छोड़ें जग में विचरे निर्दावे।।
उल्टी सुरती निर्ति निरंतर बाहर से भीतर लावे।
अधर सिंहासन अविचल आसन जहां वहां सुरती ठहरावे।।
त्रिकुटी महल में सेज बिछी है द्वादश अंतर छिप जावे।
अजर अमर निज मूरत सूरत ओम सोंग दम ध्यावे।।
सकल मनोरथ पूर्ण साहिब फिर नहीं भव जल आवे। गरीबदास सत्पुरुष वैदेही सांचा सतगुरु दरसावे।।
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