*1006 प्रेम का मार्ग बांका रे।453।।

                                   453
प्रेम का मार्ग बाका रे।
          जानत है बहु शीश प्रेम में अर्पण जागा रे।।
यह तो घर है प्रेम का रे खाला का घर नाहीं।
 शीश काट चरणा धरे रे तब फेटे घर माही।
             देख कायर मन साका रे।।
प्रेम प्याला जो पिए रे शीश दक्षिणा देय।
लोभी शीश ना दे सके रे नाम प्रेम का लेय।
                  नहीं वह प्रेमी बांका रे।।
प्रेम ना बाड़ी उपजे रे प्रेम ना हाट विकाय।
रानी राजा जो चाहे, सिर सांटे ले जाए।।
                 खुले मुक्ति का नाका रे।।
जोगी जंगम सेवड़ा रे सन्यासी दुर्गेश।
बिना प्रेम पहुंचे नहीं रे ना पावे वह देश।
                      शेष जहां वर्णन थाका रे।।
प्याला पीवे प्रेम का रे चाखत अधिक रसाल।
कबीर पीनी कठिन है रे, मांगे शीश कराल।।
                      के वह तेरा बाबा का सजका रे।।

Comments

Popular posts from this blog

*165. तेरा कुंज गली में भगवान।। 65

*432 हे री ठगनी कैसा खेल रचाया।।185।।

*106. गुरु बिन कौन सहाई नरक में गुरु बिन कौन सहाई 35