*902 मन खोज ले मिले अविनाशी।।418।।
418
मन खोज ले मिले अविनाशी, घट में तेरे मथुरा काशी।
अंड पिंड ब्रह्मांड में देखो।
सात दीप नौ खंड में देखो।
गगन पवन में करो तलाशी।।
उसका तो घर है तेरे ही घर में।
काहे को भटक रहा वृथा डगर में।
कर ले ध्यान तू जग के वासी।।
भूल भुलैया का तोड़दे ताला।
अंधियारा दूर कर होगा उजाला।
सतगुरु ज्ञान काटे यम फांसी।।
रामकिशन जग सपने की माया।
माया में तूने खुद को भूलाया।
कर दे भुगतान बढ़ जाए राशि।।
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