*1029 या मेवा उपजे बे।।464
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या मेवा उपजे बेसुम्मार, भक्ति का बाग लगा ले।। मन अपने की जमीन बना ले, राम नाम को बैल बना ले।
ओहैं सोहंग बीज बुआ ले। फेर बोवै सुखमणि नार।।
किस्मत को तूं रख ले हाली, तेरे बाग की करे रखवाली।
सींचे पेड़ हरी हो डाली। फेर शीतलता जल डाल।।
इस मन को तूं रखले चातर, तेरे बाग की करेगा खातिर।
दुई मृग को दूर भगा कर, फेर लूटो अजब बहार।।
ईश्वरदास समझ गुण गावे,सोई हरिचंद बाग लगावै।
राम नाम से हेत लगावै, वे नर उतरे भव जल पार।।
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