*1007 प्रेम प्रीत की रीत दुहेली।।453।।
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प्रेम प्रीत की रीत दुहेली, जो जाने सो जाने री।।शीश देवे सो प्याला लेवे, मूर्ख क्या पहचाने री।
काका जी काम नहीं है यह महबूबा ना माने री।।
तन मन धन सब कुछ सौंपे, साहब हाथ बिकाने जी।।
नित्यानंद मिले स्वामी गुमानी लग गई चोट निशाने जी।।
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