*966 मोहे लगन लगी गुरु पवन की।।439।।

                          966
मोहे लगन लगी रे गुरु पावन की।
                              गुरु पावन की घर लावण की।। 
छोड़ काज और लाज जगत की, निशदन ध्यान लगावन की।
सूरत उजाली हुई मतवाली, गगन महल में जावण की।।
झिलमिल कारी जोत निहारी, जैसे वो बिजली सावन की।।
ब्रह्मानंद मीटी सब आशा, नीरख छवि  मनभावन की।।

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