*989 है तेरा तुझ माही देख ले।।447।।

                             447
है तेरा तुझ मांही देख ले पर्दे है परगट बोले।। 
नाभि कंवल की गहरी_२ नदियां, उल्टी पवन शिखर डोले।
नाम ने सुरता गा मनकारी, लगन मगन में तूं होले।।
पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण, चार कूट भरमत डोले।
तूं जिस कारण फिरे भरमता, वो रह गया तिल के ओले।।
आप अखंडी तूं वनखंडी, बस्ती बसे न वन डोले।
कह  कमाली है बड़भागी, पेड़ पकड़ निर्भय होले।।

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