*958 सुनिए मन चंचल रे।।436।।

                                 958
सुनिए मन चंचल रे, कुछ कर ले होश अकल रे।
                                 क्यों डगर डगर भटकाए।
तेरी दो दिन की जिंदगानी रे, क्यों व्यर्था जन्म गंवाए,

कितने जन्म तेरे बीत गए, ना सतगुरु शिक्षा पाई।
भरम बीच में रहा भरमता मीथ्या  जन्म गंवाईं।
     कुछ ना करे कमाल रे तने बहुत करें उपाय।।

भाई बंधु कुटुंब कबीला इनकी है मजबूरी।
यम राजा का आवे संदेशा जाना पड़े जरूरी।
        सतगुरु के बिना तेरी मजदूरी कोई काम ना आए।।

मोह माया में फस के बंदे तू बन बैठा अभिमानी।
आवागमन के चक्कर में तने, खो दी चारों खानी।
       तेरा उत्तम चोला है इंसानी, समझे और समझाएं।।

सतगुरु धारण किया गुरु ने,
गुरु म्हारे ने पदवी पाई, तारी संगत सारी।।
        सत्य राह पर चलते रहिए, सतगुरु राह बताए।।

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