*944 देख तमाशा डाट रे मन ने।।432।।
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देख तमाशा रे डाट लोभी मन ने, कोई दिना की चहल बाजी।लाख चतुराई कर ले एक दिन जाएगा,
सच कहूं रे सत्य क्यों ना आती।।
माया ने देख के तूं हुआ रे तू दीवाना,
कट गया शील कुब्ध जागी।
देख कुटुंब फंदे में फंस गया,
घाल मरा रे मोह की फांसी।।
हरि के भजन बिन रीता रे रह गया,
जल बिन मशक पड़ी रे खाली।।
उदय अस्त का राज करे थे,
वह भी छोड़ गए रे गद्दी।
मूर्ख सो गया नींद भरम की,
भर गया पेट हुआ रे राजी।।
जो जन्मा सो आया रे मरण में,
अमर नहीं पंडित का जी।
पीर पैगंबर हुए हैं फना अरे,
आया हेला अगम जासी।।
मात-पिता तेरा कुटुंब कबीला,
जागा अकेला ना कोई साथी।।
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
भजन बिना जागा चौरासी।।
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