*909 रुक जा ओ पापी मन रुक जा।419।।

                              419
रुकजा ओ पापी मन रुकजा, सतगुरु के चरणों में झुक जा।
तेरा शीश तले पग ऊपर थे सतगुरु जी से कॉल किया।
मैं भजन करूंगा तेरा रे, तनी गर्भ बीच में वचन भरा।
                     इब आशा तृष्णा में फस गया।।
तने बाल अवस्था गवाई, तू खेला और खाया रे।
जब जवानी चड़के आई उस मालिक को बुलाया रे
                     फिर आवे बुढ़ापा सुकड़ जा।
बिन सतगुरु के कौन बचावे, जब-यम पकड़ ले जावेगा।
पेश उड़े तेरी चाले ना, पिंजरे ने तोड़ भगा देगा।
                   जब काल की जेल में ठुक जा।।
तने 600 मस्ताना समझावे अब तो हो जा बैरागी रे।
सत्संग सुमिरन वाणी में तेरी सुरता कोना लागी रे
                  इब शब्द रंग में रंग जा।।
              




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