*990 नजर से देख ले भाई।।447।।
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नजर से देख ले भाई, ईश्वर तेरे घट माही।।क्यों काशी क्यों मथुरा जावे, जाए हिमालय क्यों दुख पावे। कर सत्संग विचार भेद, सच्चे गुरु से पाई।।
कस्तूरी मृग नाभि विराजे, घास सूंघता वह बन वन भाजे।
बिन जाने मूर्ख यूं ही फिरता भटकाई रे।।
हाड़ मांस का यो पिंजर काया, चेतन के बल फिरे फिराया।
बाजीगर ने कठपुतली का नाच नचाई रे।।
विषयों में तू सुख को माने, ब्रह्मानंद स्वरूप ना जाने।
उलट सूरत संभाल भरम मन का मिट जाए रे।।
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