*972 लगन की चोट भारी है।।440।।

                                  440
लगन की चोट भारी है कटारी से करारी है।।  

लगी सुल्तान के जाई जिसने छोड़ दी बादशाही।
छोड़ी जिसने सहस्त्र हुरियां, अठारह लाख की सुरियां।।

लगी बाजींद के जाई, दिया सब माल लूटवाई।
मरे हुए ऊंट को देखा, जगत में बहुत बड़ा धोखा।।

लगी फ़रीद के जाआई, वह लटके कुए के माही।
हुआ तन सुख की झीना, मिले सतगुरु दृश्य दीन्हा।।

लगी मनसूर के जाई, करी ऐसी जगत माही।
कहीं जिसने अनहलक बानी, गड़ी जिनके सूल ना जानी।

जलन की भीड़ है भारी क्या जाने बांझवा नारी।
जगत में होती न्यू आई, साहेब के पीर तन जारी है।।

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