*996 जीव जीव में है वही।।449।।
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जीव जीव में है वही हर दिल जिसका धाम। घट घट मे जो रम रहा, वो ही मेरा राम।।
नहीं वह जन्म लिया दशरथ के नहीं वह वन वन भटका।
नहीं किया कभी वध किसी का, नहीं जगत में अटका।।
वही निरंतर मुझ में तुझ में, नहीं अलग कोई धाम।।
किसी के दिल को दुखा के प्यारे, ढूंढे राम कहां पर।
हर दिन जिसका सेम रूप है बैठा वही यहां पर।
चंदर प्रभु को देखता में हर पल आठों याम।।
पूजा मेरी यही निरंतर हर पल हर क्षण होवे।
कोई जीव दुखे ना मुझसे, सुखों में सब जग सोए।
सत्य अहिंसा यही धर्म है धारण करें महान।।
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