*994 निरंजन माला घट में फिरे दिन रात।।448।।
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निरंजन माला घट में फिरे दिन रात।।ऊपर आवे नीचे जावे सास सास चल जात।
संसारी नर समझे ना ही व्यर्था जन्म गवात।।
त्रिकुटी में जब नाम को जहां उजाला होय।
सुहासा माही जपने से दुविधा रहे ना कोय।।
सोहम मंत्र जपे नित्य प्राणी, बिन जीभ्या बिन दांत।
आठ पहर में सोवत जागत कभी ने पलक रुकात।।
माला फेरत जुग भया फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे मन का मनका फेर।।
हनसा सोहम सोहम हंसा, बार-बार उल्टात।
सतगुरु पूरा भेद बतावे, निश्छल मन ठहरात।।
पीपी करता दिन गया रेन गया पिय ध्यान।
विरह लगन के शहजे सधे, भक्ति योग और ज्ञान।।
जो जोगी जन जान लगावे, बैठ सदा प्रभात।
ब्रह्मानंद मोक्ष पद पावे फिर जन्म नहीं आत।।
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