*872 मन नेकी करले दो दिन।।409।।

                               409
मन नेकी करले दो दिन का मेहमान।।

जोरू लड़का कुटुंब कबीला, दो दिन का तन मन का मेला।
अंत काल उठ चले अकेला, तज माया अभिमान।।

कहां से आया कहां जाएगा, तन छूटे मन कहां जाएगा।
आखिर तुझ को कौन कहेगा, गुरु बिन आतम ज्ञान।।

यहां कौन है तेरा सच्चा साईं, झूठी है यह जग सुनाई।
कौन ठिकाना तेरा भाई, कहां बस्ती कहां गांव।।

रहट माल कूप जल भरता, कभी भरे कभी रीता फिरता।
एक बार तुम जनमें मरता, क्यों करता अभिमान।।

लख चौरासी लगी त्रासा, ऊंच-नीच घर करता वासा।
कहे कबीर सब छूटे वासा, ले लो हरि का नाम।।

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