*915 मनवा मान रे कहीं।।421।।

                                  421
मनवा मान रे कहीं।
जग में जीना है दिन चार काफिर ऐसा दांव नहीं।।

धन जो बन ने देख देख तू नाचे थई थई।
तूं काल के आगे न्यू उड़ जा ज्यों तांत के आगे रूई।।

हाथी घोड़ा पालकी दाता ने तुझे दई।
आंख खोल कर देख लिए यह संग ना किसी के गई।।

माया मिल गई जो मुझे खर्ची ना खाई गई।
वह दाब जमीन में गया वह काम ना किसी के रही।।

अब तो मनवा मान जा तन बहुत सी कही।
कह कबीर सुनो भाई साधो ना डूबेगा मझ मई।।

Comments

Popular posts from this blog

*165. तेरा कुंज गली में भगवान।। 65

*432 हे री ठगनी कैसा खेल रचाया।।185।।

*106. गुरु बिन कौन सहाई नरक में गुरु बिन कौन सहाई 35