*901 आई रे मनवा आई आज तेरी बारी।।417।।

                             417
आई रे मनवा आई आज तेरी बारी।
काल जाल लिए द्वार खड़ा कौन गुदड़ी थारी।।
सुंदर काया देख के लाग्या करण किलोल।
भाई बंधु सब तेरा बजा रहा रे ढोल।
                          करे था बड़ी खिलाड़ी।।
धन माया जोड़ के चढ़ा जोबन का रंग।
ना देखा कभी पलट के राम का ढंग।
                        चला कर सूनी गलियारी।
तीर्गुण  माया का महल ईटी पांच रंगी।
मैं मैं करता फिरे जा घमंड की झंडी।
                      बंधी एक पुड़िया में सारी।
रामकिशन दीया काट झमेला, हो गया चकनाचूर।
आत्मराम कभी ना चेता रहा राम से दूर।  
                       कर चलने की तैयारी।।

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