*882 मनवा बना मदारी रे।।412।।

                               412
मनवा बना मदारी रे।
इंद्रिय वश रस फंस के, खो दई उम्र सारी रे।।

आंख से देखा नहीं पड़ेगा लगी त्रिष्णा भारी रे।
झूठ जाल में झूल रहा लगी सच्ची खारी रे।।

लोभ बजाई डुगडुगी करी काम सवारी रे।
लगी आपदा नहीं डांटता फिरे दर-दर मारी रे।।

पितर देवी गोगा पूजे, रहा ख्वारी रे।
जंतर मंतर पूजा आरती खूब उतारी रे।।

कदे ना आया संत शरण में ना भरम निकारी रे।
उलझ उलझ के ऐसा उलझा ना ज्ञान विचारी रे।।

सतगुरु ताराचंद कहे समझ,  करो सत सवारी रे।
शब्द नाव में बैठो राधा स्वामी धाम उतारी रे।।

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