*907 मन मगन हुआ रे अब क्या डोले।।419।।

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मन मगन हुआ रे अब क्या डोले।
हीरा पाया गांठ गठियाया, बार-बार वा को क्यों खोलें।।
हल्की थी जब चडी तराजू पूरी भाई फिर क्या तोले।।
सूरत कलारी भई मतवाली मदवा पी गई बिना तोले।
हंसा पावे मानसरोवर, फिर ताल तलैया क्यों डोले।।
तेरा साथ है तुझ भीतर फिर बाहर नैना क्यों खोलें।
कह कबीर सुनो भाई साधो साहब मिल गया तिल ओलहे।।

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