*871 मन लागो मेरो राम फकीरी में।।408।।

                               408
मनवा लागे मेरा राम फकीरी में।।
जो सुख देखा राम भजन में वह सुख नहीं अमीरी में।
भला बुरा सबकी सुन लीजिए कर गुजरान गरीबी में।।
प्रेम नगर में रहन हमारी, भली बनाई शबुरी में।
हाथ में कुंडी बगल में सोंटा, चारों कूट  जगीरी में।।
आखिर में तन खाक मिलेगा कहां फिरे मगरुरी में।
कह कबीर सुनो भाई साधो साहिब मिलेंगे सबुरी में।।

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