*919 मानत नहीं मन मेरा रे साधु भाई।।423।।

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मानत नहीं मन मेरा रे साधु भाई माने ना मन मेरा।।
बार बार यह कह समझावे, जग में जीवन थोड़ा रे।।

या काया का गर्व न कीजिए क्या सांवल क्या गोरा रे।
भक्ति तन काम में आवे कोट सुगंध चबोरा रे।।

या माया जिसे देख रे भूलो क्या हाथी क्या घोड़ा रे।
जोड़ जोड़ धन बहुत बिगुचे, लाखन कोट करोड़ा रे।।

दुविधा दुरमति और चतुराई जन्म गयो नर बोरा रे।
अज हुं आन मिलो सतसंगत, सतगुरु नाम नेहोरा रे।।

लेत उठाएं पड़त भूमि गिर गिर, ज्यो बालक बिन कोरा रे।
कहे कबीर चरण चित रखो ज्यों सुई बिच डोरा रे।।

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