*941 मन ना रंगाए रंगाए जोगी कपड़ा।।431।।

                            431
मन ना रंगाया, रंगाए जोगी कपड़े।।
काम क्रोध ने डेरा डाला, मांग मांग के खाए टुकड़े।।
घर-घर जाकर अलख जगाया गलियों के भौंसाए कुतडे।।
बन खंड जाकर धुना लाया, दिल ना जलाया जलाए गठरे।।
आजकल के नए-नए साधु जोहर पर जाके खिंडाए फफड़े।।
कहे कबीर सुनो भाई साधो सतनाम के ना लाए रगड़े।।

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