*886 मन कहां लगा लिया रे हर से क्यों तोड़ी।।413।।
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मन कहां लगा लिया रे, हरि से क्यों तोड़ी।।तू तो आया बंदे राम भजन में कौन-बोन्द भई तेरी।
अन्य देव की करे तृष्णा हरी से कर रहा चोरी।।
जिसकी खातिर अमन कमावे कर्ता मेरा मेरी।
आखिर यम तेरा घट घेरेंगे बात ना बूझे तेरी।।
कोरा सा कपड़ा मुख पर डाला, झटक तागड़ी तोड़ी।
चार जने तने उठा कर चले बाग किसी ने ना मोड़ी।।
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