*1035 शब्द तेरा दर्द अनूठा।।465।।

शब्द तेरा दर्द अनूठा रे, अरे कोय जाने विरला साध।।

रांडी रे डांडी ना तजे रे, कर्क ने कव्वा खात।
बलख बुखारा तज चला रे, थी कोय पिछली लाग।।

मोहमाया ने त्याग दे रे, नान्हा हो के भेष।। 
जो सुख चाहवै अगम का रे, पल में झलके शीश।।

चाहे फिरे तेरे बसे हे तन में, कितना सै तन में मांस।
इतना है तो बहुत है रे, हाड़ चाम और सांस।।

जहां आपा वहां आपदा रे, जहां शंसय वहां शाेग।
कह कबीरा धर्मीदास ने रे, ये हैं चारों रोग।।




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